Wednesday, November 21, 2007

मिचिगन

में यूनिवर्सिटी ऑफ़ मिचिगन में पड़ रहा हूँ| यह मेरे चौथा और आकरी साल हैं| मेरी डिग्री हैं बचेलोर्स इन मकनिकल इंजीनियरिंग एंड मनुफ़क्त्रुइन्ग् स्य्स्तेम्स| अगर आपको लगता हैं की मेरी डिग्री काफी बोरिंग हैं तो हाँ में भी काफी ख्वार होता हूँ| मगर हमारा कालेग दुनिया के सबसे बड़े कालेजो में माना जाता हैं और हमारी पढाई काफी मुश्किल होती हैं| में मिचिगन २००४ को आया था और कुछ ही दिनों मैं पूरे कैम्पुस के बस स्य्स्तेम और रास्तों को अच्छी तरह जान गया| यहा हमारे कालेज में दुनिया की हर जगह से लोग पड़ने के लिए आते हैं| इसलिए आप दुसरे मुल्को के जाय्केदार खानों का यहा आसानी से मज़ा ले सकते हैं| मेरे यहा पर करीबन बीस से चालीस दोस्त बने हैं और में ज्यादातर उनमे से आठ या नौ लोगो के सात सबसे ज़्यादा वक्त बिताता हूँ| यहा पढाई सिर्फ़ जुम्मे की शाम तक होती हैं| जुम्मे की शाम से लेकर इतवार की रात तक ज्यादातर में अपने दोस्तो के घर या उनके सात बाहर जाता हूँ| एक इंजिनियर की जिंदिगी में ये मुश्किल हैं, इसलिए महीने में अजर दोस्तो के एक या दो दफा मुलाकात हो जाए तो काफी माना जाता हैं| अबा मेरी ये कोशिश हैं की यहा से ग्रादुअते होने के बाद में तीन या चार सालो के लिए काम करना चाहता हूँ और उसके बाद जहा जिंदगी लेकर जायेगी हम वह जायेंगे|

निखिल चोपडा

मे आज कुछ अपने बारे लिखना चाहता हूँ| मेरी साल गिरह अपरेल २० को हैं, चार साल की उम्र मैं मेरा बोर्डिंग स्कूल मैं दाकिला हुआ जो मेरे घर के काफी दूर था| पहला साल सबसे मुशकिल था क्यूंकि घर की बहुत याद आती थी, हर वक्त मेरे चहरे पर मायूसी थी और स्कूल के लोग काफी सकती से पेश आया करते थे, मगर साल दो साल बाद दोस्त बन चुके थे और फिर घर की कमी ज़्यादा महसूस नही होती थी| बचपन में खूब खेला करता था मगर आहिस्ता- आहिस्ता सुस्त होता गया, शायद इसी वजह से मुझे कविता का शोक हुआ; कम लफ्जों में अपने दिल-ओ-दिमाग का इज़हार कलाम से किया जा सकता हैं| में पढ़ाई का कम खेल का ज़्यादा शोकीन हूँ| मुझे वोल्लिबोल और सौ-कर मे दिलचस्पी हैं| में कोशिश करता हूँ की टीवी पर इनके बड़े-बड़े गेम्स ज़रूर देखा करूं| पढाई-लिखाई में मुझे गाणित सबसे ज़्यादा पसंद हैं क्यूंकि बाकियों में सवाल मे गणित के अलावा और भी चीजे करनी होती हैं| गणित के अलावा में हिन्दी में लिखी गई उर्दू कविता का बहुत शोकीन हूँ| मुझे साहिर लुधिंवी और मीना कुमारी (महजबीं बनो) की कविताए दूसरे शा.इरो के मुकाबिले में ज़्यादा पसंद हैं| अगले ब्लॉग मैं में आपको अपने कालेज के बारे में बताऊंगा|

Tuesday, November 13, 2007

हिंगोट जारी.....

यहाँ के लोगों का मानना है कि इस युद्ध में उनकी गहरी आस्था है। युद्घ खेलने से पहले बाकायदा गाँव के मंदिर में पूजा-अर्चना की जाती है। फिर यह युद्ध शुरू किया जाता है। दोनों ओर योद्धा हिंगोट और बचाव के लिए ढाल लेकर खड़े हो जाते हैं और शुरू हो जाता है खतरनाक खेल। एक बार शुरू होने के बाद यह युद्ध तब तक चलता है जब तक आखिरी हिंगोट खत्म न हो जाए।

बीस सालों से हिंगोट खेलने वाले कैलाश हमें बताते हैं कि यह युद्ध उनके गाँव की परंपरा है। वे कई बार घायल हो चुके हैं, लेकिन इसे खेलना छोड़ नहीं सकते। वहीं राजेंद्र कुमार बताते हैं कि वे पिछले एक माह से हिंगोट जमा करने और उसमें बारूद भरने का काम कर रहे हैं। पिछले साल हिंगोट उनके मुँह पर लगा था। इलाज के समय पाँच टाँके भी आए थे, लेकिन इन सबके बाद भी वे हिंगोट खेलना छोड़ नहीं सकते। इस साल वे दुगने उत्साह से हिंगोट खेल रहे हैं।

हिंगोट खेलने ही नहीं, बनाने की प्रक्रिया भी बेहद खतरनाक होती है। फलों में बारूद भरते समय भी छोटी-मोटी दुर्घटनाएँ हो जाया करती हैं। इसके साथ युद्ध को खेलने से पहले योद्धा जमकर शराब भी पीते हैं। इससे दुर्घटना की आशंकाएँ बढ़ जाती हैं। कई बार अप्रिय‍ स्थ‍िति भी खड़ी हो जाती है। इससे बचाव के लिए यहाँ भारी पुलिस बल और रैपिड एक्शन फोर्स को तैनात रखा जाता है।

यूँ हिंगोट के समय गाँव में उत्सव का माहौल रहता है। गाँववासी नए कपड़ों और नए साफों में खुश नजर आते हैं, लेकिन एकाएक होने वाले हादसे अकसर उनके मन में भी एक टीस छोड़ जाते हैं।

हिंगोट

दीवाली की जगमगाहट, पटाखों की रंगीन रोशनी और धमाकों के बाद "इंडिया-इ- न्यूज़" आपको रूबरू करा रही है एक और दीवाली से। इस दीवाली में रोशनी है, चिंगारी है, धमाका है, लेकिन साथ ही है युद्ध। हम यहाँ बात कर रहे हैं मध्यप्रदेश के इंदौर शहर के पास गौतमपुरा क्षेत्र में खेले जाने वाले हिंगोट युद्ध की। हिंगोट गौतमपुरा क्षेत्र में खेला जाने वाला एक रावायती खेल है, जिसे युद्ध का रूप दिया जाता है। यूँ तो इस युद्ध में हर साल काफी लोग जख्मी होते हैं, लेकिन फिर भी गाँव वालों का उत्साह कम नहीं होता। इस युद्ध की तैयारियों के लिए गाँववासी एक-डेढ़ महीने पहले से ही कँटीली झाड़ियों में लगने वाले हिंगोट नामक फलों को जमा करते हैं। फिर फलों के बीच में बारूद भरा जाता है। निचे दिखायी गई पिक्चर को हिंगोट कहते हैं|



इस बारूद भरे देसी बम को एक पतली-सी डंडी से बाँध देसी रॉकेट का रूप दे दिया जाता है। बस फिर क्या, गाँव के बच्चे, बूढ़े और जवान इंतजार करने लगते हैं दीवाली के अगले दिन का, जिसे हिंगोट युद्ध के नाम से पहचाना जाता है। यह युद्ध दो समूहों- कलंगा और तुर्रा के बीच खेला जाता है।

युद्ध में दोनों समूह अंधाधुंध तरीके से एक-दूसरे पर हिंगोट बरसाते हैं। हर साल खेले जाने वाले इस अग्नियुद्ध में चालीस से पचास लोग घायल हो जाते हैं, लेकिन गाँव वालों का इस युद्ध के प्रति लगाव कम नहीं होता। गाँव से बाहर पढ़ने या नौकरी करने वाले लोग भी हिंगोट के समय गाँव जरूर लौटते हैं।

Saturday, November 3, 2007

सिक्किम कोन्तिनुएद् ३

साक्षरता दर : 56 फीसदी
राज्य का पक्षी : लाल रंग का तीतर
राज्य का फूल : नोबल ऑर्चिड
राज्य का वृक्ष : होडाडेंड्रॉन (गुलाब के समान फूल रखने वाला वृक्ष) बुरुंश (पहाड़ी वृक्ष)।
नकदी फसलें -इलायची, चाय, अदरक, आलू, नारंगी औषधीय पौधे, फूल और पुष्प कंद।

पूर्वी हिमालय में तीसरी बड़ी पर्वतमाला कंचनजंगा (8534 मीटर) के नीचे बसा सिक्किम उत्तर में तिब्बत, पूर्व में भूटान, पश्चिम में नेपाल और दक्षिण में पश्चिम बंगाल से घिरा है। यहाँ के निवासी कंचनजंगा को अपना रक्षाकवच और प्रमुख देवता मानते हैं।

उत्तर से दक्षिण की ओर 100 किमी और पूर्व से पश्चिम में 60 किमी तक फैला सिक्किम 8540 मीटर के समुद्रतल से 244 मीटर ऊँचा है। मनोहारी उन्नत शिखरों, हरी-भरी वादियों, तेज बहती नदियों और पहाड़ी मैदानों से भरा सिक्किम पर्यटकों के लिए स्वर्ग कहा जा सकता है।

इसकी खास विशेषता यह है कि नीचे बसी वादियों में आपको गर्मी का अनुभव होगा लेकिन अगर आप पहाड़ों के ऊपर पहुँच जाते हैं तो आपको बर्फ से ढँकी चोटियाँ दिखेंगी जिन पर आपको अत्यधिक सर्दी का अनुभव होगा।

सिक्किम कोन्तिनुएद्

राजधानी : इस राज्य की राजधानी गंगटोक है, जो कि समुद्रतल से 5,840 मीटर की ऊँचाई पर है।

जिला मुख्यालय : राज्य के चार जिलों में उत्तर में मागन, दक्षिण में नामची, पूर्व में गंगटोक और पश्चिम में ग्यालसिंग जिला मुख्यालय हैं।

जनसंख्या : 4, 56,000
भाषाएँ : नेपाली, अँग्रेजी, हिन्दी, भूटिया (सिक्किमी), भूटिया (तिब्बती), लेपचा और लिम्बू भाषाएँ बोली जाती हैं।

मौसम : प्रतिवर्ष जनवरी-फरवरी के दौरान तापमान 4 डिग्री सेंटीग्रेड तक पहुँच जाता है। मौसम सर्दी का रहता है। मध्य मार्च से लेकर मई के बीच ही सूर्य के दर्शन होते हैं। भारी मानसून आते रहने के कारण सिक्किम में ज्यादातर समय बरसात होती रहती है।

गर्मियों में अधिकतम तापमान : 28 डिग्री सेल्सियस
सर्दियों में निम्नतम तापमान : 0 डिग्री सेल्सियस
मुद्रा : भारतीय रुपया

निकटतम रेलवे स्टेशन : पश्चिम बंगाल का न्यू जलपाईगुड़ी स्टेशन यहाँ से 148 किमी दूर है। यह रेलवे स्टेशन भारत के सभी प्रमुख शहरों से जुड़ा है।

निकटतम हवाई अड्डा : पश्चिम बंगाल में सिलीगुड़ी का बागडोगरा हवाई अड्डा। यहाँ से कोलकाता, दिल्ली, गुवाहाटी और अन्य शहरों के लिए सीधी उड़ानें हैं।

हेलिकॉप्टर सेवा : बागडोगरा हवाई अड्डे से गंगटोक के लिए हेलिकॉप्टर सेवा भी है। गंगटोक पहुँचने में मात्र 30 मिनट लगते हैं। यह सेवा सिक्किम के पर्यटन विभाग द्वारा चलाई जाती है। उत्तरी सिक्किम, युमथांग और अन्य स्थानों के लिए टूर व उड़ानें भी विभाग संचालित करता है।

सड़क मार्ग : गंगटोक सड़क मार्ग से बंगाल के सिलीगुड़ी नगर से जुड़ा है, जो कि 114 किमी दूर है और यहाँ तक पहुँचने में चार घंटे लगते हैं। उल्लेखनीय है कि देश के उत्तर और उत्तर-पूर्व भागों को जोड़ने में सिलीगुड़ी एक महत्वपूर्ण नगर है। गंगटोक सड़क मार्ग से दार्जीलिंग और कलिमपोंग से भी जुड़ा है।

सिक्किम

यदि आप कुदरत की अनछुई खूबसूरती से रूबरू होना चाहते हैं तो सिक्किम आपका इंतजार कर रहा है। हिमालय की तलहटी में बसा यह छोटा सा राज्य उत्तर में 27 से 28 डिग्री अक्षांश और पूर्व में 88 से 89 डिग्री देशांतर में बसा हुआ है।

आकार में मात्र 7,096 वर्ग किमी क्षेत्र में फैले इस राज्य का भूभाग समुद्र तल से 300 मीटर से लेकर 8585 मीटर तक ऊँचा है। भौगोलिक दृष्टि से यहाँ विश्व की सर्वाधिक आकर्षक पर्वत श्रृंखलाएँ-सिंगेलेला और चोला हैं, जिनमें से कंचनजंगा का सबसे ऊँचा शिखर भी शामिल है। सिंगेलेला अगर राज्य के पश्चिमी सीमा पर है तो चोला पूर्वी सीमा पर स्थित है। इनमें सिनीलोछू, पाडिंम, नरसिंग, काबरू, पिरामिड और नेपाल पर्वत शिखर शामिल हैं।

पूर्वी हिमालय में स्थित राज्य का एक हिस्सा उत्तर में तिब्बत के स्वशासी राज्य से लगा है। पूर्व में तिब्बत और पश्चिमी भूटान, पश्चिम में पूर्वी नेपाल और दक्षिण में पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग गोरखा हिल्स हैं।

Tuesday, October 23, 2007

रिश्ता निभाइए

वर्तमान समय में जहाँ पति-पत्नी दोनों नौकरीपेशा होते हैं, वहाँ वैवाहिक संबंधों को स्थायी रूप से बनाए रखना कठिन होता जा रहा है, जिसके अनेक कारण हो सकते है। इनमें कुछेक निम्न हो सकते हैं|

१. अक्सर नौकरीपेशा महिलाओं का अपना अलग सर्कल बन जाता है, जहाँ स्त्री-पुरुष दोनों काम करते हैं। सामाजिक समारोहों जैसे विवाह, बच्चों के जन्मदिन, धार्मिक कार्यक्रम जो अधिकतर शाम या रात्रि में होते हैं, उनमें कभी-कभी पत्नी को अकेले भी जाना पड़ सकता है। ऐसे में कभी देर हो जाने पर पुरुष सहकर्मी द्वारा सुरक्षा की दृष्टि से उसे घर छोड़ने जाने पर पति अपनी पत्नी पर शक करने लग जाता है, जिससे उनका वैवाहिक जीवन ही खतरे में पड़ जाता है। लेकिन याद रखिए परस्पर विश्वास ही किसी भी विवाह की पहली आवश्यक शर्त होती है।

२. संयुक्त परिवारों में नौकरीपेशा नारी को दोहरे शोषण का सामना करना पड़ता है। अधिकांशतः बुजुर्गों की उपस्थिति में पति अपनी पत्नी का घर के कामों में हाथ नहीं बँटा पाते या नहीं बँटाना चाहते। तब सारा बोझ अकेली पत्नी पर आ जाता है।

३. नौकरीपेशा पत्नी हमेशा दोहरी चिंता में उलझी रहती है। ऑफिस या कार्यस्थल की तथा घर (मकान नहीं) पर बच्चों व पति की चिंता, क्योंकि विवाह के बाद अधिकांश भारतीय पति, पत्नी पर बहुत अधिक निर्भर हो जाते हैं।

इसलिए जरूरी है कि नौकरीपेशा पति-पत्नी समय निकालकर आपसी बातचीत, वार्तालाप द्वारा छोटी-बड़ी घरेलू तथा अन्य समस्याओं का हल निकालें। साथ ही पति भी गृहकार्य तथा बच्चों के लालन-पालन में पत्नी की मदद करें। सारी समस्याओं को आपसी सामंजस्य से हल किया जा सकता है। जरूरत है आपसी विश्वास, धैर्य तथा एक-दूसरे के प्रति निष्ठा बनाए रखने की।

कब्ज से बचाव

आज कब्ज से लगभग सभी पीड़ित हैं, इसका कारण है कुछ भी कभी भी खा लेना। यहाँ तक तो ठीक है, कुछ लोग खाने के बाद बैठे रहते हैं या रात को भोजन पश्चात सो जाते हैं, यही सब कब्ज को पैदा करते हैं।

अमेरिका आने से पहले मेरी अम्मी ने कब्ज के खिलाफ लड़ने मे मेरी मदद की थी| मुझे कब्ज की बीमारी थी और यह जाने का नाम भी नही ले रही थी और, कब्ज रहता है तो यह सभी बीमारियों का मूल होता है|
इसलिए मैंने एक लिस्ट बनाईं जिसमे कब्ज होने पर हम इन उपयों का सहारा ले सकते हैं|

गरिष्ठ, बासी व बाजरू खाद्य पदार्थों का सेवन न करें। चाय, कॉफी, धूम्रपान व मादक वस्तुओं से भी परहेज करें।

* बेड-टी की जगह बेड-वाटर लेने की आदत डालें।
* नियमित व्यायाम, योगासन व सुबह कुछ देर टहलने की आदत डालें। सूर्योदय से पूर्व बिस्तर अवश्य छोड़ दें।
* 20 ग्राम त्रिफला रात को 250 ग्राम पानी में भिगोकर रख दें। सुबह शौच से पूर्व त्रिफला का निथरा हुआ पानी पी लें, कुछ ही दिनों में कब्ज दूर हो जाएगा।
* रात्रि को सोने से पूर्व एक चम्मच शुद्ध शहद एक गिलास ताजे पानी के साथ मिलाकर नियमित रूप से पीने से कब्ज दूर हो जाएगा।
* प्रातःकाल बिना कुछ खाए चार दाने काजू, 5 दाने मनुक्का के साथ खाने से भी कब्ज में लाभ होता है।
* रोज रात्रि में हर्रे का बारीक चूर्ण एक चम्मच फाँक कर एक गिलास कुनकुना पानी पीने से कब्ज दूर होकर पेट साफ रहता है।
* गाजर-मूली, शलजम, टमाटर, पालक की पत्तियाँ, चौलाई और बीट की पत्तियों के सलाद में नारियल की गिरी भी मिला दें।
ये कब्ज को रोकने के लिए कुछ उपाय है| अजर आप के पास कुछ जोड़ने के लिए है टू मुझे ज़रूर बताएगा|

Tuesday, October 16, 2007

साइबर रोमांस

साइबर रोमांस की पहली सीढ़ी है विभिन्न चैट साइट। यहाँ लोग नेट के जरिए पहुँच, आपस में बातचीत करते हैं और विचारों का आदान-प्रदान करते हैं। कुछ लोग संबंधों को इससे भी आगे ले जाने के इच्छुक होते हैं और वे आपस में मिलने या फोन करने जैसी प्रक्रिया में लग जाते हैं।
चैट साइट पर विचारों का आदान-प्रदान तमाम के दिल टूटने का वायस भी बनता है। आशा के लिए तो कम से कम ऐसा हुआ ही है। आशा ने चैट साइट के जरिए पहली बार 35 लोगों से एक साथ संपर्क साधा और एक व्यक्ति से उसके विचार काफी हद तक मिले भी। लंबे समय तक चैट साइट पर विचारों के आदान-प्रदान के बाद आशा ने उससे मिलने का मन बना ही लिया और पहली मुलाकात में ही उसका दिल टूट गया। वह जिससे मिली वह सिर्फ लच्छेदार बातों में धनी था। जब आशा ने जिम्मेदारियों और अन्य गंभीर विषयों पर बातचीत शुरू की तो वह पहले दर्जे का मूर्ख साबित हुआ। इसके बाद तो आशा ने साइबर रोमांस के बारे में सोचना तक गवारा नहीं किया।

लेकिन जरूरी नहीं कि प्रत्येक रोमांस का हश्र आशा जैसा ही हो। सुनय के साथ तो बिलकुल जुदा ही हुआ। नेट पर फ्लर्ट करने के दौरान उसकी मुलाकात एक लड़की से हुई। बातचीत होती रही और पहली मुलाकात ने थोड़ी-बहुत बची ढँकी-छिपी बातों का भी खुलासा कर दिया। नतीजतन दोनों ने पहले-पहल एक-दूसरे को चुना फिर एक-दूसरे के माँ-बाप ने देखा और पसंद कर लिया। और वे शादी के बंधन में बंध गए।

ब्रेन जिम

ब्रेन जिम का फंडा यह है कि अपने शरीर के विभिन्न अंगों को हिलाओ-डुलाओ लेकिन इस अंदाज में कि इससे मस्तिष्क की कार्यक्षमता बढ़ जाए। इस फंडे के मुरीदों का दावा है कि इससे न केवल याददाश्त अच्छी होती है बल्कि विभिन्न प्रकार के भय से छुटकारा मिलता है और तनाव से भी मुक्ति मिल सकती है। अनेक माता-पिता अपने बच्चों की याददाश्त बढ़ाने तथा उन्हें परीक्षाओं का तनाव झेलने की शक्ति देने के इरादे से ब्रेन जिम भेजने लगे हैं।

वैसे विश्व के अनेक मनोविज्ञान विशेषज्ञ तथा न्यूरोलॉजी से जुड़े विद्वान ब्रेन जिम की अवधारणा से असहमति भी जताते आए हैं। इनका कहना है कि इस बात की पुष्टि करने के लिए कोई वैज्ञानिक तथ्य उपलब्ध नहीं है कि ब्रेन जिम में की गई कसरत से दिमागी शक्ति बढ़ती है। ये बताते हैं कि रूटीन से हटकर कोई भी काम करने से मस्तिष्क तरोताजा होता है। कारण यह कि रूटीन काम में हमारे मस्तिष्क का बायाँ हिस्सा सक्रिय होता है जबकि रूटीन से हटकर कुछ करने में दायाँ हिस्सा। अतः रूटीन से हटकर यदि आप डांस क्लास या कराटे क्लास भी जॉइन कर लें तो आपके मस्तिष्क को लाभ होगा।

Monday, October 8, 2007

करेला

करेले का नाम सुनते ही जीभ में कड़वाहट-सी घुल जाती है, परंतु इसके कड़वेपन पर न जाएँ, औषधीय गुणों की दृष्टि से यह किसी भी अन्य सब्जी या फल से कम नहीं।

करेला ग्रीष्म ऋतु की खुश्क तासीर वाली सब्जी है। इसमें फॉस्फोरस पर्याप्त मात्रा में पाया जाता है। यह कफ की शिकायत दूर करता है|
दमा होने पर बिना मसाले की छौंकी हुई करेले की सब्जी खाने से फायदा होता है। पेट में गैस बनने या अपच होने पर करेले के रस का सेवन करना चाहिए। लकवे के मरीज को कच्चा करेला बहुत फायदा करता है।

उल्टी-दस्त या हैजा होने पर करेले के रस में थोड़ा पानी और काला नमक मिलाकर सेवन करने से तुरंत लाभ मिलता है। यकृत संबंधी बीमारियों के लिए तो करेला रामबाण औषधि है। जलोदर रोग होने या यकृत बढ़ जाने पर आधा कप पानी में 2 बड़ी चम्मच करेले का रस मिलाकर ठीक होने तक रोजाना तीन-चार बार सेवन करने से लाभ होता है। पीलिया रोग में पानी में करेला पीसकर खाना चाहिए।

करेला रक्तशोधक सब्जी है। मधुमेह के रोगी को एक चौथाई कप करेले के रस में समान मात्रा में गाजर का रस मिलाकर पिलाना चाहिए। खूनी बवासीर होने पर 1 चम्मच करेले के रस में आधा चम्मच शकर मिलाकर एक माह तक सेवन करने से खून आना बंद हो जाता है। गठिया या हाथ-पैर में जलन होने पर करेले के रस की मालिश करना चाहिए।

होली पर क्या ना करे

होली मुख्यतः आनंदोल्लास तथा भाई-चारे का त्योहार है। जैसे-जैसे समय गुजरता गया वैसे-वैसे इसको मनाने के ढंग में बुराइयाँ भी प्रविष्ट होती चली गईं। इससे मित्रता तो दूर उल्टा शत्रुता ने जन्म लेना शुरू कर दिया।

इस अवसर पर अबीर, गुलाल तथा सुंदर रंगों के स्थान पर कुछ असभ्य तथा मंदबुद्धि लोग कीचड़, गोबर, मिट्टी, न छूटने वाला पक्का जहरीला रंग आदि का प्रयोग करते हैं। इससे इस त्योहार की पवित्रता जाती रहती है। अतः इनका प्रयोग न करें।

इस अवसर पर गंदे तथा बुरा हँसी-मजाक भी नहीं करना चाहिए।

टाइटल देते समय हमें दूसरों के आत्म सम्मान का विशेष ध्यान देना चाहिए।

हमें इस त्योहार पर किसी के हृदय को चोट पहुँचाने वाला व्यवहार नहीं करना चाहिए।

इस दिन होलिका दहन में गीले दरख्त को काटकर आग की भेंट नहीं चढ़ाना चाहिए। इससे हमारी कीमती लकड़ी का नुकसान तो होता ही है, साथ ही माहौल का विनाश भी होता है।

इसप्रकार हमें प्रेम और एकता के इस त्योहार को हर्ष और उल्लास के साथ ही मनाना चाहिए।

Tuesday, October 2, 2007

लालबहादुर शास्त्री

लालबहादुर शास्त्री भारत के एकमात्र ऐसे प्रधानमंत्री हुए जो सादगी का मिसाल थे। उन्हें प्रधानमंत्री पंडित नेहरू के निधन के बाद देश का दूसरा प्रधानमंत्री (२ जून १९६४) चुना गया था। बदकिस्मती से वे सिर्फ १९ महीने ही प्रधानमंत्री रहे।
भारत-पाकिस्तान की जंग के बाद ताशकंद में एक समझौता वार्ता हुई जिसमें शास्त्रीजी भी मौजूद थे। इस वार्ता में भारत को जीती हुई जमीन लौटाना थी। शास्त्रीजी यह सदमा बर्दाश्त न कर सके और वहीं उनका हृदयाघात के बाद निधन हो गया।
लेकिन उन्हें सादगी और ईमानदारी के कारण आज भी राष्ट्र सच्चे मन से याद करता है। उनका जन्म २ अक्टूबर १९०४ को वाराणसी जिले में मुगलसराय के अत्यंत साधारण परिवार में हुआ था। पिता शारदाप्रसाद शिक्षक थे। वे जब दस वर्ष के थे तभी पिता का निधन हो गया। उनकी परवरिश ननिहाल में हुई। परिवार की गरीबी, सादगी उनकी आत्मा से हमेशा चिपकी रही।
प्रधानमंत्री बनने के बाद भी वे एक आम आदमी की तरह ही अपने को मानते थे। वे जितने अच्छे व नेक इंसान थे उतने ही आला दर्जे के कुशल प्रशासक भी थे। उनके प्रधानमंत्री काल में सूखा प़ड़ गया तो खुद सप्ताह में एक दिन व्रत रखते थे। इसका असर लोगों में भी दिखाई दिया और देश में कई लोग शास्त्रीजी के संकल्प का पालन करने लगे।
२ अक्टूबर को शास्त्रीजी की जयंती गाँधी जयंती के साथ आती है इसलिए अकसर उन्हें कम याद किया जाता है, लेकिन देश के लिए उन्होंने जो योगदान दिया है, वह किसी बड़े स्वतंत्रता सेनानी या देशभक्त से कम नहीं है।

काली माँ

काली संस्कृत के काल लफज़ से आता है, जिसका मतलब हैं वक़्त| इसका मतलब मृत्यु भी होता है| काली माँ एक हिंदू देवी है और वे बा-वन कैप्रियो का एक माला पेहेंती हैं और उनका दामन काटे हुआ हाथों का है| इस वजह से ज़्यादातर लोग उन्हें एक तारीक़ तर और सकती देवी के रूप मे देखते है| आजकल काली माँ के दूसरे देवियों की तरह अन्य भक्त है,और मंदिरों में उनके दर्शन करने के लिए लोगो की बड़ी भीड़ होती हैं| काली माँ का जो भी रूप हो वे दूसरी देवियो से ज़्यादा ख़ुदा तरस हैं चूंकि वे हमे मोक्ष या निर्वाण का रास्ता बताती हैं| काली माँ शिव भगवान की तरह बुरायिओं और अंधकार का सर्वनाश करती हैं|काली माँ का सब से मशहूर भेष दक्शिनाकाली हैं| कहा जाता है की इस रूप में काली माँ अपने शिकारों का लहू पी कर नशे मे भयानक नाच नाचने लगी और इस गुस्से मे वे ग़लती से शिव भगवान पर नाचने लगती है और बाद मैं शर्मनाक होकर वह अपना जीब बहार करती है| काली माँ को मे भी मानता हूँ और इस ब्लॉग के ज़रिये मे उनके बारे मे थोड़ा इंफोर्मेशन पढ़ने वाला को देना चाहेथा था|

Tuesday, September 25, 2007

cricket

क्रिकेट एक बहुत ही रोमांचक खेल है| काफी देर बाद आख़िर मैं हिंदुस्तान और पाकिस्तान दोनों का आमना सामना फ़ाइनल मे हुआ| हर दफा आस्ट्रेलिया को जीतते देखकर क्रिकेट का मज़ा ही नही रहा| पाकिस्तान के सात जब हमारा मुकाबला होता हैं तो इसमे हुनर के सात सात जुनून की भी बहुत ज़रूरत होती है| हर दफा की तरह इस बार भी मैच आखिरी ओवर तक गया और अंत मैं हम फ़तह हुए| मुझे बहुत खुशी हुई की इतनी कोशिशों और इतने दबाव के बाद हिंदुस्तान ने ट्वेंटी ट्वेंटी विश्व कप को आसमान की तरफ़ उठाया| हमने धोनी में एक कैप्टन देखा और सचिन और द्रविड़ के न होते हुआ भी हमने दूसरी टीमों को हराया| युवराज ने पुरी सिरीज़ मे बहुत रन बनाया और ज़्यादातर उसकी कोशिशों के वजह से हम दूसरी टीमों के खिलाफ अच्छा स्कोर बनापाये| उम्मीद यही हैं की हम इसी तरह अपना मनोबल को और मज़बूत बनाए और आने वाले आस्ट्रेलिया सिरीज़ मे फ़तह हासिल करे|

Career Fair

हर सितम्बर के आखिरी हफ़्ते को हमारे कॉलेज मे करियर फेर होता है| इस वक़्त देश के कोने-कोने से तकरीबन सौ से दो सौ कम्पनियाँ हमारे कॉलेज मे आती है| यह फेर दो दिनो के लिये ही होता है इसलिये इन दो दिनो का छात्र पूरे तरीके से लाभ लेते है| इस वजह से ज़्यादती छात्र अपनी क्लास मे ना जाकर इस फेर मे हाज़िर होते है| मे एक इंजीनियर हुं और फेर मे ज्यादातर इन्जीनियरिन्ग कम्पनियाँ आती है| मेरे कॉलेज के पहले दो सालों मे मैने किसी बी कम्पनी के लिए एपलाइ नही किया, इसलिए नही की मे करना नही चाहता था, मगर इसलिए कि कम्पनी मुझे किस आधार पर नौकरी देती? मेरे पास कोई तज़ुर्बे नही था| पिछले साल मैने जाने का फ़ैसला किया था| फेर मे बहुत सारे छात्र और कम्पनियाँ थी| सुबह दस बजे से लेकर शाम के पाँच बजे तक मैने और मेरे दोस्तों ने तकरीबन बीस से तीस कंम्पनियों मे अर्जी दी| उम्मीद तो यही थी कि कोई भी और कही बी नौकरी मिल जाऐं मगर मे असफल रहा| लेकिन मे अपने दोस्तों के लिए खुश था जिन्हे नौकरी मिली थी| इस साल भी मेरी कोशिश है कि कही भी नौकरी लग जाऐं, अब आगे देखते है, होता है क्या|

Saturday, September 15, 2007

aatankwadi kaun

आतंकवादी कौन

इस लफ़्ज़ के साथ आप किन-को शामिल करना चाहेंगे? मेरे ख्याल मे बहुतों का जवाब होगा ओसामा और उसकी तरह के मुसलमान जीनों ने हजारों लोगो कि जाने ली है| दूसरी ओर बहुत सारे ओसामा को इमाम के बराबर और बुश और उसके साथियों को अफग़ानिस्तान और इराक के खिलाफ जंग लड़ने को एक घिनौना जुर्म मानते है| मेरे लिस्ट मे ये दोनो शामिल तो हे ही मगर इनके साथ वे तमाम नेताओं भी शामिल है जो हर देश मे है, और जो रोज़ आम आदमी कि जिंदगी से खेलते है| ये तमाम लोग एक बड़ा ही खतरनाक खेल खेल्ररहे है जिसमे वे फितरती तारीख़े से चंद लोगो को अपना मोहरा बनाते है और उन्हे अपना हथियार बनाकर बेगुनाहों के खिलाफ इस्तेमाल करते है|
ये काफी सदियों से चले आ रहा है लेकिन हम इनके ना पाक इरादों से अनजान है और अगर जानते भी हे तो अनजान बने रहने कि कोशिश करते है| कौन जुटा है और कौन ज्यादा जुटा है ये अपना अपना नज़रिया है| अगर सीधी उंगली से घी नही निकलता तो उंगली ठेड़ी करनी पड़ती है|

Friday, September 14, 2007

बढ़ती आबाधि

बढ़ती आबादी

बस कुछ ही सालों की बात है, हिंदुस्तान की आबादी चीन से भी बढ़कर होगी| सरकार इसको निपटने के लिये क्या-क्या कर रही है इसका मुझे ज्यादा पता नही, लेकिन मेरे हिसाब से इस मसले के हल है शिक्षा|
हमारे देश के गाँवों मे लड़के का जन्म अच्छा माना जाता हे और लड़कियों का बुरा| लड़के का फ़र्ज़ हे पूरे परिवार का भार उठाना और लड़की का घर का काम सीखना और एक दिन निकाह करके पराया हो जाना| इसलिये परिवार का मरद तब तक बच्चे पैदा करता है जब तक लड़का न हो| आखिर मे जब लड़का पैदा होता है तो पिताजी ख्याल करते हे कि ये बड़ा होकर अपनी बहनों का निकाह कर्वायेग़ा और बुढ़ापे मे हमारी देखरेख करेगा और ऐसे ही ज़िदग़ी भर तीर्जिया इस बंदे के ज़िस्त का मुक़्क़द्दर बन जाती है|
जब तक लोग औरत जात की महत्वाकांक्षा को मान्यता नही देंगे और दोनो लड़के और लड़कियाँ को स्कूल नही भेजेंगे तब तक ग़रीबी,अशिक्षा और बढ़ती जनसंख्या दीमक बनकर हमारे वतन को कमजोर करती जायेग़ी| अगर सरकार की कोशिश से औरत और मर्दों को बराबरी की शिक्षा दी जाऐं और मर्दों कि तरह औरतों को उनके पसंद का काम करने का मौका मिले तो हम जनसंख्या विस्फोट से निपटने का सुझाव ढूँढ सकते है|