Wednesday, November 21, 2007
मिचिगन
में यूनिवर्सिटी ऑफ़ मिचिगन में पड़ रहा हूँ| यह मेरे चौथा और आकरी साल हैं| मेरी डिग्री हैं बचेलोर्स इन मकनिकल इंजीनियरिंग एंड मनुफ़क्त्रुइन्ग् स्य्स्तेम्स| अगर आपको लगता हैं की मेरी डिग्री काफी बोरिंग हैं तो हाँ में भी काफी ख्वार होता हूँ| मगर हमारा कालेग दुनिया के सबसे बड़े कालेजो में माना जाता हैं और हमारी पढाई काफी मुश्किल होती हैं| में मिचिगन २००४ को आया था और कुछ ही दिनों मैं पूरे कैम्पुस के बस स्य्स्तेम और रास्तों को अच्छी तरह जान गया| यहा हमारे कालेज में दुनिया की हर जगह से लोग पड़ने के लिए आते हैं| इसलिए आप दुसरे मुल्को के जाय्केदार खानों का यहा आसानी से मज़ा ले सकते हैं| मेरे यहा पर करीबन बीस से चालीस दोस्त बने हैं और में ज्यादातर उनमे से आठ या नौ लोगो के सात सबसे ज़्यादा वक्त बिताता हूँ| यहा पढाई सिर्फ़ जुम्मे की शाम तक होती हैं| जुम्मे की शाम से लेकर इतवार की रात तक ज्यादातर में अपने दोस्तो के घर या उनके सात बाहर जाता हूँ| एक इंजिनियर की जिंदिगी में ये मुश्किल हैं, इसलिए महीने में अजर दोस्तो के एक या दो दफा मुलाकात हो जाए तो काफी माना जाता हैं| अबा मेरी ये कोशिश हैं की यहा से ग्रादुअते होने के बाद में तीन या चार सालो के लिए काम करना चाहता हूँ और उसके बाद जहा जिंदगी लेकर जायेगी हम वह जायेंगे|
निखिल चोपडा
मे आज कुछ अपने बारे लिखना चाहता हूँ| मेरी साल गिरह अपरेल २० को हैं, चार साल की उम्र मैं मेरा बोर्डिंग स्कूल मैं दाकिला हुआ जो मेरे घर के काफी दूर था| पहला साल सबसे मुशकिल था क्यूंकि घर की बहुत याद आती थी, हर वक्त मेरे चहरे पर मायूसी थी और स्कूल के लोग काफी सकती से पेश आया करते थे, मगर साल दो साल बाद दोस्त बन चुके थे और फिर घर की कमी ज़्यादा महसूस नही होती थी| बचपन में खूब खेला करता था मगर आहिस्ता- आहिस्ता सुस्त होता गया, शायद इसी वजह से मुझे कविता का शोक हुआ; कम लफ्जों में अपने दिल-ओ-दिमाग का इज़हार कलाम से किया जा सकता हैं| में पढ़ाई का कम खेल का ज़्यादा शोकीन हूँ| मुझे वोल्लिबोल और सौ-कर मे दिलचस्पी हैं| में कोशिश करता हूँ की टीवी पर इनके बड़े-बड़े गेम्स ज़रूर देखा करूं| पढाई-लिखाई में मुझे गाणित सबसे ज़्यादा पसंद हैं क्यूंकि बाकियों में सवाल मे गणित के अलावा और भी चीजे करनी होती हैं| गणित के अलावा में हिन्दी में लिखी गई उर्दू कविता का बहुत शोकीन हूँ| मुझे साहिर लुधिंवी और मीना कुमारी (महजबीं बनो) की कविताए दूसरे शा.इरो के मुकाबिले में ज़्यादा पसंद हैं| अगले ब्लॉग मैं में आपको अपने कालेज के बारे में बताऊंगा|
Tuesday, November 13, 2007
हिंगोट जारी.....
यहाँ के लोगों का मानना है कि इस युद्ध में उनकी गहरी आस्था है। युद्घ खेलने से पहले बाकायदा गाँव के मंदिर में पूजा-अर्चना की जाती है। फिर यह युद्ध शुरू किया जाता है। दोनों ओर योद्धा हिंगोट और बचाव के लिए ढाल लेकर खड़े हो जाते हैं और शुरू हो जाता है खतरनाक खेल। एक बार शुरू होने के बाद यह युद्ध तब तक चलता है जब तक आखिरी हिंगोट खत्म न हो जाए।
बीस सालों से हिंगोट खेलने वाले कैलाश हमें बताते हैं कि यह युद्ध उनके गाँव की परंपरा है। वे कई बार घायल हो चुके हैं, लेकिन इसे खेलना छोड़ नहीं सकते। वहीं राजेंद्र कुमार बताते हैं कि वे पिछले एक माह से हिंगोट जमा करने और उसमें बारूद भरने का काम कर रहे हैं। पिछले साल हिंगोट उनके मुँह पर लगा था। इलाज के समय पाँच टाँके भी आए थे, लेकिन इन सबके बाद भी वे हिंगोट खेलना छोड़ नहीं सकते। इस साल वे दुगने उत्साह से हिंगोट खेल रहे हैं।
हिंगोट खेलने ही नहीं, बनाने की प्रक्रिया भी बेहद खतरनाक होती है। फलों में बारूद भरते समय भी छोटी-मोटी दुर्घटनाएँ हो जाया करती हैं। इसके साथ युद्ध को खेलने से पहले योद्धा जमकर शराब भी पीते हैं। इससे दुर्घटना की आशंकाएँ बढ़ जाती हैं। कई बार अप्रिय स्थिति भी खड़ी हो जाती है। इससे बचाव के लिए यहाँ भारी पुलिस बल और रैपिड एक्शन फोर्स को तैनात रखा जाता है।
यूँ हिंगोट के समय गाँव में उत्सव का माहौल रहता है। गाँववासी नए कपड़ों और नए साफों में खुश नजर आते हैं, लेकिन एकाएक होने वाले हादसे अकसर उनके मन में भी एक टीस छोड़ जाते हैं।
बीस सालों से हिंगोट खेलने वाले कैलाश हमें बताते हैं कि यह युद्ध उनके गाँव की परंपरा है। वे कई बार घायल हो चुके हैं, लेकिन इसे खेलना छोड़ नहीं सकते। वहीं राजेंद्र कुमार बताते हैं कि वे पिछले एक माह से हिंगोट जमा करने और उसमें बारूद भरने का काम कर रहे हैं। पिछले साल हिंगोट उनके मुँह पर लगा था। इलाज के समय पाँच टाँके भी आए थे, लेकिन इन सबके बाद भी वे हिंगोट खेलना छोड़ नहीं सकते। इस साल वे दुगने उत्साह से हिंगोट खेल रहे हैं।
हिंगोट खेलने ही नहीं, बनाने की प्रक्रिया भी बेहद खतरनाक होती है। फलों में बारूद भरते समय भी छोटी-मोटी दुर्घटनाएँ हो जाया करती हैं। इसके साथ युद्ध को खेलने से पहले योद्धा जमकर शराब भी पीते हैं। इससे दुर्घटना की आशंकाएँ बढ़ जाती हैं। कई बार अप्रिय स्थिति भी खड़ी हो जाती है। इससे बचाव के लिए यहाँ भारी पुलिस बल और रैपिड एक्शन फोर्स को तैनात रखा जाता है।
यूँ हिंगोट के समय गाँव में उत्सव का माहौल रहता है। गाँववासी नए कपड़ों और नए साफों में खुश नजर आते हैं, लेकिन एकाएक होने वाले हादसे अकसर उनके मन में भी एक टीस छोड़ जाते हैं।
हिंगोट
दीवाली की जगमगाहट, पटाखों की रंगीन रोशनी और धमाकों के बाद "इंडिया-इ- न्यूज़" आपको रूबरू करा रही है एक और दीवाली से। इस दीवाली में रोशनी है, चिंगारी है, धमाका है, लेकिन साथ ही है युद्ध। हम यहाँ बात कर रहे हैं मध्यप्रदेश के इंदौर शहर के पास गौतमपुरा क्षेत्र में खेले जाने वाले हिंगोट युद्ध की। हिंगोट गौतमपुरा क्षेत्र में खेला जाने वाला एक रावायती खेल है, जिसे युद्ध का रूप दिया जाता है। यूँ तो इस युद्ध में हर साल काफी लोग जख्मी होते हैं, लेकिन फिर भी गाँव वालों का उत्साह कम नहीं होता। इस युद्ध की तैयारियों के लिए गाँववासी एक-डेढ़ महीने पहले से ही कँटीली झाड़ियों में लगने वाले हिंगोट नामक फलों को जमा करते हैं। फिर फलों के बीच में बारूद भरा जाता है। निचे दिखायी गई पिक्चर को हिंगोट कहते हैं|
इस बारूद भरे देसी बम को एक पतली-सी डंडी से बाँध देसी रॉकेट का रूप दे दिया जाता है। बस फिर क्या, गाँव के बच्चे, बूढ़े और जवान इंतजार करने लगते हैं दीवाली के अगले दिन का, जिसे हिंगोट युद्ध के नाम से पहचाना जाता है। यह युद्ध दो समूहों- कलंगा और तुर्रा के बीच खेला जाता है।
युद्ध में दोनों समूह अंधाधुंध तरीके से एक-दूसरे पर हिंगोट बरसाते हैं। हर साल खेले जाने वाले इस अग्नियुद्ध में चालीस से पचास लोग घायल हो जाते हैं, लेकिन गाँव वालों का इस युद्ध के प्रति लगाव कम नहीं होता। गाँव से बाहर पढ़ने या नौकरी करने वाले लोग भी हिंगोट के समय गाँव जरूर लौटते हैं।
इस बारूद भरे देसी बम को एक पतली-सी डंडी से बाँध देसी रॉकेट का रूप दे दिया जाता है। बस फिर क्या, गाँव के बच्चे, बूढ़े और जवान इंतजार करने लगते हैं दीवाली के अगले दिन का, जिसे हिंगोट युद्ध के नाम से पहचाना जाता है। यह युद्ध दो समूहों- कलंगा और तुर्रा के बीच खेला जाता है।
युद्ध में दोनों समूह अंधाधुंध तरीके से एक-दूसरे पर हिंगोट बरसाते हैं। हर साल खेले जाने वाले इस अग्नियुद्ध में चालीस से पचास लोग घायल हो जाते हैं, लेकिन गाँव वालों का इस युद्ध के प्रति लगाव कम नहीं होता। गाँव से बाहर पढ़ने या नौकरी करने वाले लोग भी हिंगोट के समय गाँव जरूर लौटते हैं।
Saturday, November 3, 2007
सिक्किम कोन्तिनुएद् ३
साक्षरता दर : 56 फीसदी
राज्य का पक्षी : लाल रंग का तीतर
राज्य का फूल : नोबल ऑर्चिड
राज्य का वृक्ष : होडाडेंड्रॉन (गुलाब के समान फूल रखने वाला वृक्ष) बुरुंश (पहाड़ी वृक्ष)।
नकदी फसलें -इलायची, चाय, अदरक, आलू, नारंगी औषधीय पौधे, फूल और पुष्प कंद।
पूर्वी हिमालय में तीसरी बड़ी पर्वतमाला कंचनजंगा (8534 मीटर) के नीचे बसा सिक्किम उत्तर में तिब्बत, पूर्व में भूटान, पश्चिम में नेपाल और दक्षिण में पश्चिम बंगाल से घिरा है। यहाँ के निवासी कंचनजंगा को अपना रक्षाकवच और प्रमुख देवता मानते हैं।
उत्तर से दक्षिण की ओर 100 किमी और पूर्व से पश्चिम में 60 किमी तक फैला सिक्किम 8540 मीटर के समुद्रतल से 244 मीटर ऊँचा है। मनोहारी उन्नत शिखरों, हरी-भरी वादियों, तेज बहती नदियों और पहाड़ी मैदानों से भरा सिक्किम पर्यटकों के लिए स्वर्ग कहा जा सकता है।
इसकी खास विशेषता यह है कि नीचे बसी वादियों में आपको गर्मी का अनुभव होगा लेकिन अगर आप पहाड़ों के ऊपर पहुँच जाते हैं तो आपको बर्फ से ढँकी चोटियाँ दिखेंगी जिन पर आपको अत्यधिक सर्दी का अनुभव होगा।
राज्य का पक्षी : लाल रंग का तीतर
राज्य का फूल : नोबल ऑर्चिड
राज्य का वृक्ष : होडाडेंड्रॉन (गुलाब के समान फूल रखने वाला वृक्ष) बुरुंश (पहाड़ी वृक्ष)।
नकदी फसलें -इलायची, चाय, अदरक, आलू, नारंगी औषधीय पौधे, फूल और पुष्प कंद।
पूर्वी हिमालय में तीसरी बड़ी पर्वतमाला कंचनजंगा (8534 मीटर) के नीचे बसा सिक्किम उत्तर में तिब्बत, पूर्व में भूटान, पश्चिम में नेपाल और दक्षिण में पश्चिम बंगाल से घिरा है। यहाँ के निवासी कंचनजंगा को अपना रक्षाकवच और प्रमुख देवता मानते हैं।
उत्तर से दक्षिण की ओर 100 किमी और पूर्व से पश्चिम में 60 किमी तक फैला सिक्किम 8540 मीटर के समुद्रतल से 244 मीटर ऊँचा है। मनोहारी उन्नत शिखरों, हरी-भरी वादियों, तेज बहती नदियों और पहाड़ी मैदानों से भरा सिक्किम पर्यटकों के लिए स्वर्ग कहा जा सकता है।
इसकी खास विशेषता यह है कि नीचे बसी वादियों में आपको गर्मी का अनुभव होगा लेकिन अगर आप पहाड़ों के ऊपर पहुँच जाते हैं तो आपको बर्फ से ढँकी चोटियाँ दिखेंगी जिन पर आपको अत्यधिक सर्दी का अनुभव होगा।
सिक्किम कोन्तिनुएद्
राजधानी : इस राज्य की राजधानी गंगटोक है, जो कि समुद्रतल से 5,840 मीटर की ऊँचाई पर है।
जिला मुख्यालय : राज्य के चार जिलों में उत्तर में मागन, दक्षिण में नामची, पूर्व में गंगटोक और पश्चिम में ग्यालसिंग जिला मुख्यालय हैं।
जनसंख्या : 4, 56,000
भाषाएँ : नेपाली, अँग्रेजी, हिन्दी, भूटिया (सिक्किमी), भूटिया (तिब्बती), लेपचा और लिम्बू भाषाएँ बोली जाती हैं।
मौसम : प्रतिवर्ष जनवरी-फरवरी के दौरान तापमान 4 डिग्री सेंटीग्रेड तक पहुँच जाता है। मौसम सर्दी का रहता है। मध्य मार्च से लेकर मई के बीच ही सूर्य के दर्शन होते हैं। भारी मानसून आते रहने के कारण सिक्किम में ज्यादातर समय बरसात होती रहती है।
गर्मियों में अधिकतम तापमान : 28 डिग्री सेल्सियस
सर्दियों में निम्नतम तापमान : 0 डिग्री सेल्सियस
मुद्रा : भारतीय रुपया
निकटतम रेलवे स्टेशन : पश्चिम बंगाल का न्यू जलपाईगुड़ी स्टेशन यहाँ से 148 किमी दूर है। यह रेलवे स्टेशन भारत के सभी प्रमुख शहरों से जुड़ा है।
निकटतम हवाई अड्डा : पश्चिम बंगाल में सिलीगुड़ी का बागडोगरा हवाई अड्डा। यहाँ से कोलकाता, दिल्ली, गुवाहाटी और अन्य शहरों के लिए सीधी उड़ानें हैं।
हेलिकॉप्टर सेवा : बागडोगरा हवाई अड्डे से गंगटोक के लिए हेलिकॉप्टर सेवा भी है। गंगटोक पहुँचने में मात्र 30 मिनट लगते हैं। यह सेवा सिक्किम के पर्यटन विभाग द्वारा चलाई जाती है। उत्तरी सिक्किम, युमथांग और अन्य स्थानों के लिए टूर व उड़ानें भी विभाग संचालित करता है।
सड़क मार्ग : गंगटोक सड़क मार्ग से बंगाल के सिलीगुड़ी नगर से जुड़ा है, जो कि 114 किमी दूर है और यहाँ तक पहुँचने में चार घंटे लगते हैं। उल्लेखनीय है कि देश के उत्तर और उत्तर-पूर्व भागों को जोड़ने में सिलीगुड़ी एक महत्वपूर्ण नगर है। गंगटोक सड़क मार्ग से दार्जीलिंग और कलिमपोंग से भी जुड़ा है।
जिला मुख्यालय : राज्य के चार जिलों में उत्तर में मागन, दक्षिण में नामची, पूर्व में गंगटोक और पश्चिम में ग्यालसिंग जिला मुख्यालय हैं।
जनसंख्या : 4, 56,000
भाषाएँ : नेपाली, अँग्रेजी, हिन्दी, भूटिया (सिक्किमी), भूटिया (तिब्बती), लेपचा और लिम्बू भाषाएँ बोली जाती हैं।
मौसम : प्रतिवर्ष जनवरी-फरवरी के दौरान तापमान 4 डिग्री सेंटीग्रेड तक पहुँच जाता है। मौसम सर्दी का रहता है। मध्य मार्च से लेकर मई के बीच ही सूर्य के दर्शन होते हैं। भारी मानसून आते रहने के कारण सिक्किम में ज्यादातर समय बरसात होती रहती है।
गर्मियों में अधिकतम तापमान : 28 डिग्री सेल्सियस
सर्दियों में निम्नतम तापमान : 0 डिग्री सेल्सियस
मुद्रा : भारतीय रुपया
निकटतम रेलवे स्टेशन : पश्चिम बंगाल का न्यू जलपाईगुड़ी स्टेशन यहाँ से 148 किमी दूर है। यह रेलवे स्टेशन भारत के सभी प्रमुख शहरों से जुड़ा है।
निकटतम हवाई अड्डा : पश्चिम बंगाल में सिलीगुड़ी का बागडोगरा हवाई अड्डा। यहाँ से कोलकाता, दिल्ली, गुवाहाटी और अन्य शहरों के लिए सीधी उड़ानें हैं।
हेलिकॉप्टर सेवा : बागडोगरा हवाई अड्डे से गंगटोक के लिए हेलिकॉप्टर सेवा भी है। गंगटोक पहुँचने में मात्र 30 मिनट लगते हैं। यह सेवा सिक्किम के पर्यटन विभाग द्वारा चलाई जाती है। उत्तरी सिक्किम, युमथांग और अन्य स्थानों के लिए टूर व उड़ानें भी विभाग संचालित करता है।
सड़क मार्ग : गंगटोक सड़क मार्ग से बंगाल के सिलीगुड़ी नगर से जुड़ा है, जो कि 114 किमी दूर है और यहाँ तक पहुँचने में चार घंटे लगते हैं। उल्लेखनीय है कि देश के उत्तर और उत्तर-पूर्व भागों को जोड़ने में सिलीगुड़ी एक महत्वपूर्ण नगर है। गंगटोक सड़क मार्ग से दार्जीलिंग और कलिमपोंग से भी जुड़ा है।
सिक्किम
यदि आप कुदरत की अनछुई खूबसूरती से रूबरू होना चाहते हैं तो सिक्किम आपका इंतजार कर रहा है। हिमालय की तलहटी में बसा यह छोटा सा राज्य उत्तर में 27 से 28 डिग्री अक्षांश और पूर्व में 88 से 89 डिग्री देशांतर में बसा हुआ है।
आकार में मात्र 7,096 वर्ग किमी क्षेत्र में फैले इस राज्य का भूभाग समुद्र तल से 300 मीटर से लेकर 8585 मीटर तक ऊँचा है। भौगोलिक दृष्टि से यहाँ विश्व की सर्वाधिक आकर्षक पर्वत श्रृंखलाएँ-सिंगेलेला और चोला हैं, जिनमें से कंचनजंगा का सबसे ऊँचा शिखर भी शामिल है। सिंगेलेला अगर राज्य के पश्चिमी सीमा पर है तो चोला पूर्वी सीमा पर स्थित है। इनमें सिनीलोछू, पाडिंम, नरसिंग, काबरू, पिरामिड और नेपाल पर्वत शिखर शामिल हैं।
पूर्वी हिमालय में स्थित राज्य का एक हिस्सा उत्तर में तिब्बत के स्वशासी राज्य से लगा है। पूर्व में तिब्बत और पश्चिमी भूटान, पश्चिम में पूर्वी नेपाल और दक्षिण में पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग गोरखा हिल्स हैं।
आकार में मात्र 7,096 वर्ग किमी क्षेत्र में फैले इस राज्य का भूभाग समुद्र तल से 300 मीटर से लेकर 8585 मीटर तक ऊँचा है। भौगोलिक दृष्टि से यहाँ विश्व की सर्वाधिक आकर्षक पर्वत श्रृंखलाएँ-सिंगेलेला और चोला हैं, जिनमें से कंचनजंगा का सबसे ऊँचा शिखर भी शामिल है। सिंगेलेला अगर राज्य के पश्चिमी सीमा पर है तो चोला पूर्वी सीमा पर स्थित है। इनमें सिनीलोछू, पाडिंम, नरसिंग, काबरू, पिरामिड और नेपाल पर्वत शिखर शामिल हैं।
पूर्वी हिमालय में स्थित राज्य का एक हिस्सा उत्तर में तिब्बत के स्वशासी राज्य से लगा है। पूर्व में तिब्बत और पश्चिमी भूटान, पश्चिम में पूर्वी नेपाल और दक्षिण में पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग गोरखा हिल्स हैं।
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