Tuesday, November 13, 2007

हिंगोट

दीवाली की जगमगाहट, पटाखों की रंगीन रोशनी और धमाकों के बाद "इंडिया-इ- न्यूज़" आपको रूबरू करा रही है एक और दीवाली से। इस दीवाली में रोशनी है, चिंगारी है, धमाका है, लेकिन साथ ही है युद्ध। हम यहाँ बात कर रहे हैं मध्यप्रदेश के इंदौर शहर के पास गौतमपुरा क्षेत्र में खेले जाने वाले हिंगोट युद्ध की। हिंगोट गौतमपुरा क्षेत्र में खेला जाने वाला एक रावायती खेल है, जिसे युद्ध का रूप दिया जाता है। यूँ तो इस युद्ध में हर साल काफी लोग जख्मी होते हैं, लेकिन फिर भी गाँव वालों का उत्साह कम नहीं होता। इस युद्ध की तैयारियों के लिए गाँववासी एक-डेढ़ महीने पहले से ही कँटीली झाड़ियों में लगने वाले हिंगोट नामक फलों को जमा करते हैं। फिर फलों के बीच में बारूद भरा जाता है। निचे दिखायी गई पिक्चर को हिंगोट कहते हैं|



इस बारूद भरे देसी बम को एक पतली-सी डंडी से बाँध देसी रॉकेट का रूप दे दिया जाता है। बस फिर क्या, गाँव के बच्चे, बूढ़े और जवान इंतजार करने लगते हैं दीवाली के अगले दिन का, जिसे हिंगोट युद्ध के नाम से पहचाना जाता है। यह युद्ध दो समूहों- कलंगा और तुर्रा के बीच खेला जाता है।

युद्ध में दोनों समूह अंधाधुंध तरीके से एक-दूसरे पर हिंगोट बरसाते हैं। हर साल खेले जाने वाले इस अग्नियुद्ध में चालीस से पचास लोग घायल हो जाते हैं, लेकिन गाँव वालों का इस युद्ध के प्रति लगाव कम नहीं होता। गाँव से बाहर पढ़ने या नौकरी करने वाले लोग भी हिंगोट के समय गाँव जरूर लौटते हैं।

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