वर्तमान समय में जहाँ पति-पत्नी दोनों नौकरीपेशा होते हैं, वहाँ वैवाहिक संबंधों को स्थायी रूप से बनाए रखना कठिन होता जा रहा है, जिसके अनेक कारण हो सकते है। इनमें कुछेक निम्न हो सकते हैं|
१. अक्सर नौकरीपेशा महिलाओं का अपना अलग सर्कल बन जाता है, जहाँ स्त्री-पुरुष दोनों काम करते हैं। सामाजिक समारोहों जैसे विवाह, बच्चों के जन्मदिन, धार्मिक कार्यक्रम जो अधिकतर शाम या रात्रि में होते हैं, उनमें कभी-कभी पत्नी को अकेले भी जाना पड़ सकता है। ऐसे में कभी देर हो जाने पर पुरुष सहकर्मी द्वारा सुरक्षा की दृष्टि से उसे घर छोड़ने जाने पर पति अपनी पत्नी पर शक करने लग जाता है, जिससे उनका वैवाहिक जीवन ही खतरे में पड़ जाता है। लेकिन याद रखिए परस्पर विश्वास ही किसी भी विवाह की पहली आवश्यक शर्त होती है।
२. संयुक्त परिवारों में नौकरीपेशा नारी को दोहरे शोषण का सामना करना पड़ता है। अधिकांशतः बुजुर्गों की उपस्थिति में पति अपनी पत्नी का घर के कामों में हाथ नहीं बँटा पाते या नहीं बँटाना चाहते। तब सारा बोझ अकेली पत्नी पर आ जाता है।
३. नौकरीपेशा पत्नी हमेशा दोहरी चिंता में उलझी रहती है। ऑफिस या कार्यस्थल की तथा घर (मकान नहीं) पर बच्चों व पति की चिंता, क्योंकि विवाह के बाद अधिकांश भारतीय पति, पत्नी पर बहुत अधिक निर्भर हो जाते हैं।
इसलिए जरूरी है कि नौकरीपेशा पति-पत्नी समय निकालकर आपसी बातचीत, वार्तालाप द्वारा छोटी-बड़ी घरेलू तथा अन्य समस्याओं का हल निकालें। साथ ही पति भी गृहकार्य तथा बच्चों के लालन-पालन में पत्नी की मदद करें। सारी समस्याओं को आपसी सामंजस्य से हल किया जा सकता है। जरूरत है आपसी विश्वास, धैर्य तथा एक-दूसरे के प्रति निष्ठा बनाए रखने की।
Tuesday, October 23, 2007
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1 comment:
मैं और मेरी पत्नी दोनो काम करते हैं। इन परेशानियों के बीच से गुजरे हैं।
जब तक हमारे बच्चे छोटे थे तब तक हमने बहुत से नियम निभाये। मेरी मां तो उन्हें समझती थीं पर हमारे मित्र गण अक्सर समझ नहीं पाते थे। हम हमेशा उनके बीच मजाक ही बनते थे।
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